मेरे पापा चले गए

The most difficult time
चिट्ठी न कोई संदेश, न जाने वो कौन सा देश जहां तुम चले गए ।

11 साल तक लड़ते रहे मेरे पापा अपनीलंबी बीमारी से । किसके लिए 

अपने परिवार के लिए,अपने बच्चों की पढ़ाई के लिए ,बच्चों के

 खूबसूरत भविष्य के लिए ।

 कैंसर से लड़ना  कोई  आसान बात नहीं है ,ना केवल इस लड़ाई में मेरे पापा

 शामिल थे परंतु पूरा परिवार मिलकर 11 साल तक इस बिमारी से  जूझता रहा।

 मैं अपने परिवार के  साथ बेंगलुरु में थी । एक शाम अचानक घर से फोन
आया और यूँ  लगा कि आसमान गिर गया। 

अगले दिन मैं घर पहुंची ,तो देखा पापा नीचे लेटे हैं- जमीन पर ,आंखें बंद ,सफेद चादर में लिपटे।

मैं पास बैठ गई चुपचाप पत्थर की बनकर।

लगभग साल के बाद मैं पापा को देख रही थी ।

अपने पति के साथ नौकरी के लिए परदेस में प्रोजेक्ट पर जाने के कारण मैं

 अपने परिवार से नहीं मिल पाई थी ।

मम्मी ने बताया कि आखरी वक्त तक पापा की आंखें तुझे ही  ढुढ रही

 थी,  अपने बहन भाई की गहरी उदासी उदासी मुझ से  देखी ना गई।

 यह लंबी जिंदगी बिन पापा कैसे कटेगी ?

पिता और पुत्री का प्रेम शब्दों में बयान नहीं किया जा सकता है ।

जो प्रेम और विश्वास मेरे मन में मेरे पापा के लिए था ,वह केवल एक पिता ही

 समझ सकते हैं।सबसे अच्छे मित्र व सखा थे वो। कभी भी मन में उलझन या

 परेशानी होने पर पापा सदा मेरे पास होते । वह मेरे गुरु थे ,मेरे पथ संचालक।

#और मेरे पापा चले गए

जीवन में कोई भी  दिन अब ऐसा नहीं है जिस दिन उनकी याद ना आती हो।

हर रोज मैं अपने भगवान से थोड़ा सा समय मांगती हूँ कि है ईश्वर  मेरे पापा से मुझे मिला दे । 

मैं आखिरी वक्त में उनके साथ नहीं थी। बिना कुछ- कहे ,सुने वे अपनी

 अंतिम यात्रा पर चले गए। आज आठ साल हो गए हैं ।उनकी यादें दिल पर

 दस्तक देती है। हर रोज उनकी याद से मेरा दिल रो पड़ता है लेकिन वह नहीं

 आते ,आंखे नम हो जाती है वह नहीं आते।

उनके जाने के बाद ना तो कोई खुशी खुशी रही और ना ही कोई गम गम रहा। 

इंसान अपने परिवार के लिए, अपने बच्चों के लिए संभल तो जाता है परंतु मुझे

 अब कोई मेरे पापा की बेटी नहीं कहता।